वर्षा ॠतु में आयुर्वेद
मानसून यानि वर्षा ॠतु, सावन, भादों महीने।
इम्युनिटी तो हर मौसम में बढा ही रहना चाहिए। बस आपके क्रियाकलाप बदल जायेंगे। ये मददगार होंगे इसे बढाने हेतु।
वर्षा ॠतु में वात दोष का प्रकोप होता है। जोड़ों के दर्द, मिर्गी, उन्माद, आदि। ये हुऐ पुराने बीमारी।
तात्कालिक समस्याएं यथा सर्दी-जुकाम, पाचन की कमजोरी, चर्बी बढने- ये सब भी होते इसी समय।
वात की उत्पत्ति होती तिक्त रस से यथा करेला, नीम। स्वाभाविक है इनका सेवन न करें इस समय।
तिक्त यानि तीता।
आयुर्वेद की बात करें तो यह बनता समीर + गगन से।
अतः षडरस में जो भी इन दो के समावेश से बनते वह भी परहेज।
कषाय= समीर+क्षितिज। कटु=समीर+पावक। अतः इन दोनों का भी कम सेवन करें।
मधुर, अम्ल, लवण का सेवन लाभदायक है मानसून में।
दही, (अम्लीय) का सेवन प्रतिदिन करें पर सिर्फ दिन में। साइट्रस फल ( citrous fruits ) यथा नींबू, संतरे, मौसम्मी का सेवन लाभदायक है।
गर्म पानी पीयें।
अचार भी सेवन करें जो अम्लीय है ,अतः लाभ करेगा।
कोरोना-काल चल रहा। कोई भी संक्रमण ( infection ) कफ-प्रकोप है,
वात नहीं। इसका भी तो ध्यान रखना पङेगा। उपरोक्त गर्म पानी व साइट्रस फ्रूट तो लाभ देंगे ही, त्रिकटु भी जोङ लें तो और बढिया- एक ग्राम दो बार गर्म पानी से सेवन।
वर्षा ॠतु में साधारण नमक न खाकर सेंधा नमक का प्रयोग करना चाहिये।
ये सब इम्यूनिटी तो बढायेंगे ही अन्य लाभ भी होंगे
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